शुक्रवार, 26 मार्च 2010

“तुम” और “मेरा समय“



ऐसा क्यों होता है जब तुम सामने होती हो?
तुम हँसती हो हँसता हूँ मै, रोता हूँ जब रोती हो
ऐसा क्यों होता है जब तुम सामने होती हो ?




देख के बुलबुल मुझको क्यों फुदुक-२ मुस्काये ?
बगीया में बैठी कोयल क्यों मीठी राग सुनाये ?
मै छुऊँ जिस कलि को क्यों छूते ही खिल जाये ?
बिन छुये छुईमुई की क्यों पत्तियां शरमाये ?
शरमाकर ये पत्तियां जाने क्या कहना चाहें ?
जब तुम आती हो
ऐसा क्यों होता है जब तुम सामने होती हो ?







हर सुबह सूर्य की किरने आ पहले मुझे जगाये
चन्दन सी शीतल हवा भी लगे मुझे ही छूना चाहे
सुबह सर्द शबनम की बूंदें मोती का सेज सजाये
देख तेरी मुस्कान सुबह की गुलाब भी शरमाये
शरमाकर कहता हो जैसे, अब तुमको क्या मेरी जरुरत ?
जब तुम मुस्कुराती हो
ऐसा क्यों होता है जब तुम सामने होती हो ?







फिर देख मुझे बुलबुल-कोयल क्यों डाल से उड़ जाये?
चन्दन सी शीतल हवा ही क्यों दिल में आग लगाये ?
फिर खिलखिलाती कलियाँ क्यों देख मुझे मुरझाये ?
मै भूलना चाहूँ तुझे पर हर पल तेरी याद दिलाएं
हर पल तेरी याद दिलाएं खुद रोयें मुझे रुलाएं
जब तुम चली जाती हो
ऐसा क्यों होता है जब तुम सामने होती हो ?