सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

तुम दीप हो मेरे आंगन का ....

 आज तुम हो तो देखो  ना
कितना खिल उठा   है  ये आंगन मेरा
तुम्हारे आने की आहट सुन कर ही 
दौड़ा आता हुं छत पर 
सायद कही दिख जाओ दूर बहुत दूर आती हुई 
पर हर बार उदास आंखे ही उतरती थी छत से
और आज जब तुम पास हो 
लाखो दीप जल उठे हैं मन में
 बाहों में समेट लेना चाहता हुं सारी खुशिया
कुछ  पल के लिए
कल फिर जब तुम चली जावोगी 
मेरे पास होगी एक उदास शाम 
और इन्तेजार सिर्फ इन्तेजार 
तुम्हारे फिर लौट आने का !! 

:) :) अप सभी ब्लोगर साथियों  को  दिवाली की हार्दिक शुभकामनाये ...
लीजिये पेस है मेरे तरफ से मिठाईया   व पठाखे आप के लिए  :):)


अजी शरमाइये नहीं एक ही खा लीजिये ... :):)

जरा संभल कर ____ :) 
 
एक बार फिर आप सभी को स-परिवार  दिवाली की हार्दिक शुभकामनाये   

 

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

मुझे वन्देमात्रम गाना है

क्यों न रास्ट्र गान के रूप में वन्देमात्रम गाया  जाये  ?
 


जन गण मन की कहानी ..............................​.

सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल
विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के
लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से
हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर
दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने
अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित
 किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत
में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज
पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा।


उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके
परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके
बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता
डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया
कंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी
अंग्रेजों के लिए। रविंद्रनाथ
 टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन अधिनायक
जय हे भारत भाग्य विधाता"। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी
राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो
हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था।


इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है "भारत के नागरिक, भारत की
जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे
अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो !
जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात,
मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा,
बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और
 गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम
जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा
गाते है। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय
हो। "


जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया। जब वो
इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया।
क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं
आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है। जब अंग्रेजी
अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज
तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की।
 वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम
के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड
गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था।


उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला
किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर
दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके
इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना
ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो
लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और
 यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो
गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है। जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र
नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया
गया।


रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला
कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा
क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब
उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक
कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत
जोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो
 की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली।
इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को
लौटा दिया। सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो
अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो
के खिलाफ होने लगे थे।


रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और
ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद
की घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन' अंग्रेजो के
द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा
नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है। लेकिन अंत में उन्होंने
लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को
 नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब
कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे। 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ
टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र
सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये।


1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई।
जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल
नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि
स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition
Government) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर
सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस
 मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल
बनाया। कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल।


गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे
मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं
स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से
इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के
लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम
दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे।
 उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय
अंग्रेजो से समझौते में रहते थे। वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ
होती थी। नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन
गण मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम"।


नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था
तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि
मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती
(मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर
विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली
जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना
 शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे
मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये
कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब
भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति
कर डाली। संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद
ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित
 वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई।


बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम था
पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के
दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से
मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का
फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन
मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम
 (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया
जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया "विजयी
विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा"। लेकिन नेहरु जी उस पर भी
तैयार नहीं हुए।


नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन
मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है। उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस
मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु
जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर
इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी
प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो
 इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया।
नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को
चोट पहुंचे, मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने
पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे,
जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया
गया गीत था और वन्देमातरम
 इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।


बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग
रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो
99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई
कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई
देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि
इसमें जो लय है उससे एक जज्बा
 पैदा होता है।


तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना है
कि आपको क्या गाना है ?




जय हिंद |

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

नमन उस शहीद को जिसने हजारो जिंदगीया बचाई ...!!!!!

 बात अभी कल की ही है (04-०८-२०११) हालाँकि आप  सभी  तक न्यूज़ चैनलो  के माध्यम से खबर पहुँच भी गई होगी...! जी हाँ मै कल हुवे विमान हादसे की बात कर रहा हूँ.... !
नागपंचमी  का दिन ही था मै शहर से गाव गया  था खाने पिने के बाद मै अपने दोस्त के   साथ   घुमने    निकल गया..
हम bike से थे  समय हो रहा था १२:१० ,,, घटना स्थल से १ किलोमीटर की दुरी पर ही थे उस वक़्त विमान काफी निचे था और अपना संतुलन खो रहा था.... हलाकि drive मै ही कर था मैने स्पीड बड़ा दी   और   कुछ   नजदीक पहुँच गए....विमान गाव  के ऊपर ही गिर रहा था pahale तो कुछ ही ऊंचाई पर विमान कई  बार कलटिया मारा
विमान के पिछले हिस्से से आग की लम्बी लपटे निकल रही थी और विमान सीधा गाव की  आबादी  में ही गिर रहा था.
ऐसे में पायलट सिद्धार्थ पाण्डेय ने जो किया वो रूह  कपा  देने वाला था..... उन्होंने अपने जान की परवाह न करते हुवे खुद को विमान से इजेक्ट करने की बजाय ढिलई गाव (जो हमारे गाव से कुछ किलोमीटर की दुरी पर है ) के हजारो गाव वालों  की जान बचाने का सफल प्रयास करने लगे ...!
और उन्होंने न तो विमान पर न खुद पर ही  नियंत्रण  खोया  और आबादी में गिर रहे विमान को  पोर्ट साइड (बाये) आबादी से दूर ले गए ......  इसी समय विमान बिजली के ११००० bolt  के पोल   से टकरा गया और पहले से ही जल रहे विमान में आग लग गई... इस जगुआर विमान में दुनिया की सबसे भरोसे मंद इजेक्सन शीट बनाने वाली कंपनी  " मार्टिन बेकिंग " की शीट लगी थी जो जेरो ऊंचाई से भी इजेक्ट हो सकती है..जिसकी सफलता दर ९९.९९५ फीसदी बताई जाती है. 
इस जाबांज ने जगुआर विमान के पोल से टकराने के बाद भी ऊँचा उठाया ..... जो अब संभव नहीं था और विमान एक पीपल के पेड़  से टकरा गया और विमान के परखचे उड़ गए और एक इतना जोर धमाका हुवा की लगा आसमान फट गया... और विमान के टुकडे १-२ किलोमीटर की दूरियों पर गिरते हुवे साफ़ deikhai दे रहे थे..
इसी के चपेट में आकर बगल के खेत में अपने माता - पिता के साथ कम कर रही रोमा साहनी ने अपनी जान मौके पर ही  गवा दिया..!
सब कुछ इतना जल्दी हुवा की हम लोगो की रूह काप गई .... दुर्घटना के बाद सिद्धार्थ के साथी पायलट अपने -२ विमान लेकर दुर्घटना  स्थल   का चक्कर काटने  लगे जो सिद्धार्थ के साथ ही गोरखपुर से उड़े थे..!

बताते चले की गोरखपुर से पायलटो की training होती है जो हमरे यहाँ   से 70 किलोमीटर की दुरी पर है
और पायलट सिद्धार्थ अभी १ august को ही गोरखपुर आये थे...!
भारतीय वायु सेना की फुर्ती और तेजी  पर मुझे आश्चर्य हुवा, विमान दुर्घटना के १५ minut बाद की   एक वायु सेना का हेलीकाप्टर मय अधिकारियो के साथ सीधा मौके पर आकर उतर गया... सायद ऊपर  चक्कर लगा रहे साथी विमानों ने कंप्यूटर से हेलिकोप्टर को दिशा  का सही संकेत दे दिया था.
अब समय था  इस जाबांज के पार्थिव शरीर के अंगो को खोजने का ....!
ओह !!  आँखों से आंशु आगये..और सब नाम आँखों से उन्हें तलास रहे थे..!
पायलट सिद्धार्थ पाण्डेय अपने माता पिता की इकलौते बेटे थे ... और एक bahan के इकलौते  भाई !
वो allahabad के थे .. inke पिता  श्री अभय नारायण पाण्डेय IIT गोंडा में finance अफसर hain !
उन  हजारो लोगो के साथ हमारी संवेदनाये इस शोकाकुल  परिवार के साथ है..!
आपको उन हजारो हाथे से सलाम और हजारो सिरों को झुका कर नमन है ....!
आप सौ बार इस दुनिया में जनम लेवे.........!!
 
जुगो जुगो तक आप की वीरता याद करेंगे..
उन हजारो हाथे से चरणों  में सुमन अर्पित करेंगे..!
हर बार भिगेंगी पलके हमारी ...
आप जब जब ज़माने को याद आएंगे  ...!!


 


मंगलवार, 28 जून 2011

आप तो ऐसे ना थे....

                                  


                                   इस नफरत  की दुनिया में,  कौन अपना   कौन  बेगाना  है ?  
                          जब खुदा ने तोडा है भरोसा मेरा , फिर  किसे  आजमाना है   

                          अब    वो   चेहरा   घुमाकर    गुजर   जाते    हैं     बगल   से 
                          कहते     थे     जो  ,   ये      दिल     आपका      दीवाना      है  

                          ये फूल  कलियाँ वो  चाँद सितारे, बैठते थे आकार पास हमारे 
                          अब   ये   भी  उखड़े - उखड़े   हैं,   बेरंग   सारा   जमाना   है  !

                          क्यों   सजा    रखे   हो   दर्दो   की   दुकान   मेरे     रकीबो ?
                          बाहें    खुली    है  शाकी    की ,  और  सामने   मयखाना   है !

                          मोहब्बत   जताना  , दो  पल  हँसा  कर  उम्र भर  रुलाना 
                          मत  पूछ   मेरे   महबूब   का  ये  अंदाज  बहुत पुराना  है!

                          इरादा तो  उनका पहले से था,   आइना  तोड़ने  का  रवि 
                          ओह!   हाथ  से   छुट   गया ,  ये    तो   एक    बहाना   है !
 
 
 





रविवार, 5 जून 2011

रुको तो जरा ....... (2)

                                    मैं वो  दीवाना नहीं जो हाथ पर  तेरा  नाम  लिखूंगा  
                                    मैं वो दीवाना भी नहीं जो कसमे और वादे करूँगा
                                    ये वादे ही मोहब्बत पर इल्जाम लगाया करते  हैं
                                    मेरे हाथो में रख दे हाथ जो अपना   
                                    उम्र भर के लिए तुझे अपनी पलकों  में छुपा लूँगा 
                                    मैं वो  दीवाना नहीं जो हाथ पर  तेरा  नाम  लिखूंगा






 

शनिवार, 14 मई 2011

हम कभी कभी कितने अकेले हो जाते हैं.......

सबसे पहले तो ब्लॉग से थोड़ी सी दुरी रखने के लिए माफ़ी चाहूँगा..आप सभी ब्लॉगर दोस्तों की बहुत याद आती है.हालाँकि मेरे ब्लॉग  को फालोव करने वाले देवी व सज्जन बहुत कम है..... पर पढ़ने वाले इतने सम्मानित लोग है की ... अपनी रचनाये उनके सामने प्रश्तुत  कर मुझे खुसी मिलती है ! ब्लॉग से थोडा सा   दूर   इसलिए हूँ की जून में मेरा सी .ए. का exam है... ! exam बाद फिर से आपलोगों के सामने हाज़िर होऊंगा ...आज   कोई  कविता या गजल नहीं एक  ताजी घटना है..!

परसों की बात  है मै कही  जा रहा था  अपनी bike  से की अचानक एक १२-१३ शाल का लड़का बिना साइड हाथ या इंडिकेटर जलाये ही मेरे सामने से ही मुड गया ... फिर क्या एक टक्कर और वो  सड़क  के   किनारे   गिरा में बिच सड़क पर  .... देखते ही   देखते  एक   स्वस्थ   शारीर   में 5 -6     पट्टिया और   डॉक्टर   की   जान   लेने   वाले injection से दो चार होना  पड़ा ...!  जहा  एक्सिडेंट    हुवा   कुछ  भाई  लोगो  ने  उठा  कर  रिक्से  पर  बिठाने   की औपचारिकता पूरी की ! में गुस्से में लाल हो गया लेकिन  उस बच्चे का मासूम  सा डरा हुवा चेहरा देख कर अपने आपको रोक लिया  अब  गुस्सा  आई  उसके  माँ बाप  पर जिन्होंने इस  छोटी सी  उम्र  में   ही उसे  bike  पकड़ा दी  और खुद  मोहल्ले वालो के सामने सीना तान कर  चलते होंगे, और ये बच्चे दूसरो के लिए मुसीबत खड़ा कर देते हैं ...अगर  वो  सामने  होते तो २-४ जूते तो  जमा  ही देता !  खैर  उन भैयो का सुक्रिया जिन्होंने   रिक्से  पर  बिठाया !   फिर  रिक्शेवाला  ही  बेचारा  मुझे  हॉस्पिटल  ले गया ,,  जब डॉक्टर ने सितम  गिराना सुरु किया तो  मुझे  जोर  जोर से मम्मी  की याद आने लगी .....! बचपन में में जब भी बीमार पड़ता था मम्मी ही मुझे डॉक्टर के पास ले जाती थी ... मम्मी के हाथ रखते ही डॉक्टर के injection  का दर्द गायब...! पर आज बहुत दर्द हो रहा था मम्मी नहीं थी न इस लिए. आज मम्मी गाँव  में है और मै शहर मे ... कहने को तो बहुत से लोग अपने है .. पर अपने नहीं!
सच मे हम कभी कभी कितने  अकेले हो जाते है न  ?




सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

पलको में छुपा रखा था






हमने चुने थे  मोहब्बत के तिनके , दिल का आशियाना  बनाने   के लिए
बेरहम नसीम  ने सब कुछ बिखरा दिया, अब अर्श है सर  छुपाने  के लिए  


सोचा     था     वो      खुश       रहेंगे       आकर     मेरे      आँगन     में 
पलको  में  छुपा  रखा  था,  मकसद    था    धुप   से   बचाने    के   लिए


हम    वफ़ा    कर    सके    या      नहीं     ये      खुदा      जाने      यारो 
अपना   सब    कुछ    खो    दिया    है    बस     उन्हें     पाने    के लिए 


वो   कहते    हैं      आप     हँसते      हुए     बहुत     अच्छे   लगते    हो 
हम      मुस्कुरा      देते     हैं     बस     उन्हें      हँसाने      के       लिए 


कुछ     आसुवों    को     दामन     में      बचा     कर    रखिये     रकीब 
दर्द    और   भी     है    जिंदगी     में     आपको     रुलाने     के     लिए 


जो     मिला      है      उसी      को         मुकद्दर    समझ     लो    रवि 
किस्मत   तुमसे   भी     आगे      है    तुम्हे     आजमाने     के     लिए 



मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

काश वो इल्जाम मै लेलिया होता


आज ही मैं पल्लवी जी का blogg पढ़ रहा था .बहुत अच्छा लिखतीं हैं वो .. उनकी लेखन शैली गजब की है ! उन्होंने  संटी पर एक बहुत ही सुंदर लेख लिखा है जिसे पढ़ कर मुझे अपने बचपन के दिन याद आगये. यहाँ आकर लिखने बैठ गया कितनो की नज़र पड़ेगी इसपर पता नहीं .. अगर उनकी नज़र पड़ जाए जिसकी वजह से मुझे संटी पड़ी थी तो सायद लिखना सफल हो जाये.....

चलिए सुरुवात करतें हैं.................!
बात मेरे बचपन की है वैसे तो बचपन मेरा बहुत उथल पुथल में बिता कभी गाव में पढ़े तो कभी फरीदाबाद (शहर) में  .. अभी मैं शहर से गाव आया हूँ वहां मैं फिफ्थ में था..! गाव के राजेंद्र नगर स्कूल में मेरे दादा जी दाखिला दिलाने ले जाते हैं. सभी बच्चों का दुलारा हूँ क्यों की मैं शहर से आयां हूँ  ! प्रधानाचार्य महोदय मेरा intervew लेतें हैं .
प्रधानाचार्य जी  .......  भाई साहब बच्चा बहुत तेज है !
दादा जी प्रधानाचार्य जी से ...... गुरु जी  तेज कहें नहीं रहिये शहर में  जो पढ़त रहे. 
प्रधानाचार्य  जी ....... हम इसका admission  कच्छा आठ में कर देंतें हैं .
दादा जी प्रधानाचार्य जी से ........... नहीं नहीं गुरु जी ,  कच्छा आठ में बहुत  बड़े -बड़े  लड़का बाटें.. .....हमर नाती अभी छोटा बा. आप इनकर दाखिला कच्छा पाच में  ही कर देई !  
और  दादा जी के कहने पर मेरा दाखिला कच्छा पाच में कर दिया जाता  है.  उस  समय गावों में जमीं पर टाट पर बैठा कर प्रायमरी  के स्कूलों  में पढाया जाता था ! मै टाट पर बैठने से इनकर कर देता हूँ सभी बच्चे हंस कर मेरा मजाक उड़ा देंते हैं  
हार मान कर मैं भी उस भीड़ में सामिल हो जाता  हूँ ..अब आतें हैं कहानी के मुख्य धरा में ...........................
उसी कच्छा में कुछ ही दिन पहले एक लड़की आई रहती है मुंबई से .......अब जगह मुंबई है तो मुंबई का कुछ असर भी होगा ना .... आगे आपको पता चल जायेगा पढ़ते रहिये! ओ खुबसूरत सा गोल चेहरा घुंघुराले बाल उससे भी कहीं ज्यादा खुद पर घमंड  इस सहजादी का नाम है आकांछा राय !
अभी तक ये क्लास की मोनिटर है ......सभी बच्चो में रौब है अब मेरे आने से यह पद इनके हाथ से निकल कर मेरे हाथ में चला आता है इन्हें मुझसे जलन होने लगती  है मगर  मुझे नहीं क्यों की मै delhi से आया हूँ आखिर शहर का असर तो रहेगा न. अब कुछ दिन बीतते हैं इन दिनों में ये मुझे संटी लगवाने का पूरा बंदोबस्त कर लेती हैं. और इन्ही दिनों में  क्लास के सभी लड़के और लड़कियां मेरे अच्छे दोस्त बन जातें हैं क्यों की मै बहुत मिलनसार हूँ किसी की गलती होने पर अपने मानिटर होने का रौब नहीं जमाता, ना दोस्तों की गलतियों  को गुरु जी तक पहुंचाता   खुद ही निपटा देते ! मैं मैथ्स में बहुत तेज हूँ.. सभी बच्चों को मैं ही मैथ्स पढ़ता हूँ .....!
एक दिन लंच के बाद पांचवी घंटी चल रही थी तभी अचानक किसी के रोने की आवाज आई ....सबके साथ मैं भी देखता हूँ की कौन रो रहा आवाज तो किसी लड़की की है अगले ही पल मेरी नज़र उनके चेहरे पर पड़ती है .. वही  घुघुराले बाल गोल चेहरा और गालों से होकर आशुवों    का काफिला किताबो में घुस रहा है !आचार्य जी ने रोने का  कारन पूछा ....
जबाब मिला .....और मेरे कानो को यकीं नहीं हो रहा था की मैं क्या सुन रहा हूँ.
आचार्य जी ,
रवि ने मेरे  बैग में लेटर रखा है ..........................................................?
मेरे पाँव से जमीं खिसक गई .... ....ये ऐसा इल्जाम था जिसे उस घटना के बाद आजतक किसी ने नहीं दिया .
मैं अवाक् हूँ की आखिर ये मुझपर इल्जाम क्यों लगा रही है .........क्या चाहती है मुझसे ?
मुझे तो  लेटर का मतलब भी नहीं पता है .....बस इतना जनता हूँ की पापा को चिठ्ठी लिखता हूँ पर मेरे पापा की चिठ्ठी इसके बैग में कैसे आ गई! सबकी नज़रे मुझे ऐसे देख रही थी मानो अब मुझे जीने नहीं देंगी!
इतने में आचार्य जी मुझे अपने पास बुलाते हैं ...
और सवाल दागते हैं .....
रवि...........तुमने लेटर लिखा  ?
नहीं सर ,
मैंने कोई लेटर नहीं रखा वो  पीछे बैठती है मै तो उधर जाता भी नहीं हूँ!
सर का कोटा भी शायद अधुरा था ......आखिर एक बच्चे को उन्होंने कभी संटी नहीं लगाई थी वो  आज पूरा होने वाला था.
सीधे खड़े होकर हाथ आगे करो .......
डर के मारे मेरे पाँव हिल रहे हैं......और हाथ आगे निकल रहे हैं
अगले ही पल सटाक - २ की पांच आवाज से पूरा क्लास गूंज गया सभी भाई बहनों को मेरे पीटने का दुख है सिर्फ उनको छोड़ कर , मै अपनी जगह जा कर बैठ जाता हूँ  मेरे बैठते ही मेरा एक दोस्त आचार्य जी को सुझाव देता है !
आचार्य जी पहले लेटर तो देख लीजिये लिखा क्या है हैण्ड राइटिंग किसकी है ..................?
मुझसे अपने दोस्त पर गुस्सा आता है !
बेवकूफ सलाह भी दिया तो मेरे पीटने के बाद खैर आचार्य जी का भी माथा ठनका   और उन्होंने लेटर मांग कर देखना सुरु किया ! ओह बेचारी
लेटर की पहली लाइन ......
"अकांछा मै तुमसे बहुत प्यार करती हूँ .............................................?"
सर ने घूरती हुई आखों  से अकांछा के तरफ देखा,  उन्हें विस्वास हो रहा था की रवि को थी और था अच्छी तरह मालूम है .
अकांछा ...किसने लिखा है ये लेटर ?
सर रवि ने ,
झूट बोल रही हो तुम .....आहा ये मैं क्या सुन रहा हूँ अब मेरा दर्द गायब आतुर हूँ सुँनने के लिए की आखिर लिखा किसने ?
तुम अपनी नोट बुक लाओ ..
अब उसका चेहरा उतर रहा   है वो अपनी नोट बुक लाती   है ....आचार्य जी नोट बुक और लेटर देखने के बाद गुस्से में.
बतमीज चलो सीधे कड़ी हो जाओ और हाथ आगे करो..........!
क्लास पहले से भी ज्यादा सांत है और सटाक -२ की १० आवाज पुरे क्लास की सांति को भंग कर देती  हैं.
चु ..चु ...चु ...ये नाजुक गोरी हथेलिया इन संटियो को कैसे सह  रही है ....मै पहले पांच खा के बैठा हूँ इन्हें १० मिल रही है.
सभी भाई बहन मुझे विस्वास की नज़र से देखतें है मानो मैंने अग्नि परीछा पास कर ली हो...
अगले दिन से वो  घुघुराले बाल वाला गोल चेहरा क्लास से गायब हो जाता है और आजतक नहीं दिखा !
आज सोचता हूँ काश  वो  इल्जाम मै अपने सर लेलिया होता तो बेचारी पीटने से बच जाती ...और school  से ना जाती !
आप क्या सोचा रहें हैं ?