"यह रचना मैंने उन अभिभावकों के लिए रची थी जो समय पर अपने बच्चो का ध्यान नहीं देते ! और मैंने देखा है की देश का भविष्य कहे जाने वाले उन बच्चों का ही भविष्य भिगड़ जाता है .....यह मेरी सबसे पहली रचना है इसे मैं १०वी (Ten) में पढ़ रहा था तभी लिखा था...आशा है पिछली रचना की तरह आप इसे भी अपना प्यार देंगे .....मैं प्यार और मुहोब्बत की वजाय समाज और उसमे ब्याप्त बुराइओं पर लिखने में ज्यादा जोर देतां हूँ....रचना थोड़ी लम्बी है पर उम्मीद करता हूँ आपको पढने में असुबिधा नहीं होगी "
मै भी खडा था लिए, रवि को वहीँ पर,
दो नवयुवक आपस में, बतिया रहे थे,
एक- दुसरे को रफ्तार के बारे में, समझा रहे थे,
मुझको लगा ये , बातें कर रहें है बेकार,
मुझे क्या लेना -देना इससे, क्या होती है रफ्तार
कुछ बच्चों को, बस से स्कूल जाता देखकर,
बस मुझे क्यों नहीं ले जाती, पूछा रवि ने नाराज हो कर,
बेटा उसके पापा , बड़े पैसे है कमाते,
पर बेटा तुम क्यों,हो पछताते,
चल बेटा जरा तेज चल , तुम भी तो हो स्कूल जाते,
लेकिन मैंने दिया था, उसको झूठा दिलासा,
अभी वह बच्चा है , मेरी बातों में आ जाता,
पर मैं क्या किसी के बाप से, कम था कमाता,
रोज रात को साथ दोस्तों के, जाता था मैं मधुशाला,
होती थी जम के मौज -मस्ती,था मेरा ही बोलबाला,
मैं जवानी की गाड़ी पर , था इस कदर सवार,
क्या था लेना देना मुझको, क्या होती है रफ्तार,
धीरे धीरे दिन गुजरे , रवि हुवा सयाना,
बोला पापा और पढूंगा , पढ़कर बड़ा ऑफिसर बनूँगा,
पर आये दिन तबियत मेरी, होती थी अब ख़राब,
डॉक्टर बोला तेरी करनी है, तुने बहुत पि रखी शराब,
अब मैं जो कमाता था , खुद का करता था उपचार,
हो गई जिंदगी धीमी धीमी, ले नहीं पाई रफ्तार,
घर का बोझ पड़ा रवि पर, करने लगा नौकरी,
अक्सर कहती थी माँ उसकी, आप गलती कर रहे है भारी,
धीरे-धीरे दिन गुजरे, हुई मेरी और भी लाचारी,
रवि की पूरी कमाई , खा जाती थी मेरी बीमारी,
कभी नहीं किया मैंने, अपने पर जो विचार,
मेरे पीछे खडा है, मेरा भरा पूरा परिवार,
लगता था ख़त्म हुआ है सब, रुक गई मेरी रफ्तार,
घर आये दो नाती पोते कहते थे सुनो दादा जी
बेटा मैं पढता तो होता एक ऑफिसर कहते है पापा जी
क्या आपने उन्हें नहीं पढाया ?
ऐसा क्यों कहते हैं पापा जी?
सोचता कुछ करके दिखाऊ ,पर बुडापे ने कर लिया था गिरफ्तार
कास समझ पता मैं भी उन नवयुवकों की रफ्तार
खुशियाँ होती घर में मेरे शिक्षित होता मेरा परिवार.