मंगलवार, 5 जनवरी 2010

रफ्तार

"यह रचना मैंने उन अभिभावकों के लिए रची थी जो समय पर अपने बच्चो का ध्यान नहीं देते !  और मैंने देखा है की देश का भविष्य कहे जाने वाले उन बच्चों का ही भविष्य भिगड़ जाता है .....यह मेरी सबसे पहली रचना है इसे मैं १०वी (Ten) में पढ़ रहा था तभी लिखा था...आशा है पिछली रचना की तरह आप इसे भी अपना प्यार देंगे .....मैं प्यार और मुहोब्बत की वजाय समाज और उसमे ब्याप्त बुराइओं पर लिखने में ज्यादा जोर देतां हूँ....रचना थोड़ी लम्बी है पर उम्मीद करता हूँ आपको पढने में असुबिधा नहीं होगी "




एक बार शहर के, एक चौराहे पर,

    मै भी खडा था लिए, रवि को वहीँ पर,
       दो नवयुवक आपस में, बतिया रहे थे,
        एक- दुसरे को रफ्तार के बारे में, समझा रहे थे,
          मुझको लगा ये , बातें कर रहें है बेकार,
            मुझे क्या लेना -देना इससे, क्या होती है रफ्तार






कुछ बच्चों को, बस से स्कूल जाता देखकर,
     बस मुझे क्यों नहीं ले जाती, पूछा रवि ने नाराज हो कर,
       बेटा उसके पापा , बड़े पैसे है कमाते,
          पर बेटा तुम क्यों,हो पछताते,
             चल बेटा जरा तेज चल , तुम भी तो हो स्कूल जाते,
                लेकिन मैंने दिया था, उसको झूठा दिलासा,
                  

 अभी वह बच्चा है , मेरी बातों में आ जाता,
    पर मैं क्या किसी के बाप से, कम था कमाता,
       रोज रात को साथ दोस्तों के, जाता था मैं मधुशाला,
          होती थी जम के मौज -मस्ती,था मेरा ही बोलबाला,
            मैं जवानी की गाड़ी पर , था इस कदर सवार,
              क्या था लेना देना मुझको, क्या होती है रफ्तार,






धीरे धीरे दिन गुजरे , रवि हुवा सयाना,
   बोला पापा और पढूंगा , पढ़कर बड़ा ऑफिसर बनूँगा,
     पर आये दिन तबियत मेरी, होती थी अब ख़राब,
        डॉक्टर बोला तेरी करनी है, तुने बहुत पि रखी शराब,
          अब मैं जो कमाता था , खुद का करता था उपचार,
            हो गई जिंदगी धीमी धीमी, ले नहीं पाई रफ्तार,






घर का बोझ पड़ा रवि पर, करने लगा नौकरी,
  अक्सर कहती थी माँ उसकी, आप गलती कर रहे है भारी,
     धीरे-धीरे दिन गुजरे, हुई मेरी और भी लाचारी,
       रवि की पूरी कमाई , खा जाती थी मेरी बीमारी,
         कभी नहीं किया मैंने, अपने पर जो विचार,
            मेरे पीछे खडा है, मेरा भरा पूरा परिवार,
             लगता था ख़त्म हुआ है सब, रुक गई मेरी रफ्तार,






घर आये दो नाती पोते कहते थे सुनो दादा जी
     बेटा मैं पढता तो होता एक ऑफिसर कहते है पापा जी
         क्या आपने उन्हें नहीं पढाया ?
              ऐसा क्यों कहते हैं पापा जी?
                सोचता कुछ करके दिखाऊ ,पर बुडापे ने कर लिया था गिरफ्तार
                   कास समझ पता मैं भी उन नवयुवकों की रफ्तार
                        खुशियाँ होती घर में मेरे शिक्षित होता मेरा परिवार.






15 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

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  2. आंखे खोलने वाली रचना है, बहुत सुन्दर, बधाई

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  3. बढिया है. यदि आप चाहें तो ब्लॉग-शीर्षक को शुद्ध कर लें.

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  4. नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ द्वीपांतर परिवार आपका ब्लाग जगत में स्वागत करता है।

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  5. आपका हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है
    http://alkagoel14.blogspot.com/

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  6. आपकी अभिव्यक्ति अच्छी है
    आपकी समस्या का इलाज मैं फोन पर बता सकती हूँ ,बहुत सरल ईलाज है
    09889478084

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  7. ब्लॉग का रूप रंग देख मन खुश हुआ ...खास कर दीपिका की तस्वीर ......कविता अच्छी लगी ......!!

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  8. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे बाकि ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
    बहुत खूबसूरत रचना लिखा है आपने! गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  9. Aap sabhi warisht lekhak jano ka...meri rachna ki prashansha wa mujhe protshahit karne ke liye bahut-2 dhanyabad..!
    aap ke dwara kahe gaye do shabd hi hame disha denge apani lekhani ko majbut karne ki..aur jab mujh jaise student ki baat ho to ye aur bhi aham ho jata hai...
    ek bar fir aap sabhi ka bahut-2 sukriya.

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  10. Heartly thanx to Reshmi di,
    aap har baar meri rachna ko pahle padhkar mujeh apar khusi denti hai...!
    bas chhote bhai ko ashirwad dijiye ki mai kuchh achchha likhun...!

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