सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

तुम दीप हो मेरे आंगन का ....

 आज तुम हो तो देखो  ना
कितना खिल उठा   है  ये आंगन मेरा
तुम्हारे आने की आहट सुन कर ही 
दौड़ा आता हुं छत पर 
सायद कही दिख जाओ दूर बहुत दूर आती हुई 
पर हर बार उदास आंखे ही उतरती थी छत से
और आज जब तुम पास हो 
लाखो दीप जल उठे हैं मन में
 बाहों में समेट लेना चाहता हुं सारी खुशिया
कुछ  पल के लिए
कल फिर जब तुम चली जावोगी 
मेरे पास होगी एक उदास शाम 
और इन्तेजार सिर्फ इन्तेजार 
तुम्हारे फिर लौट आने का !! 

:) :) अप सभी ब्लोगर साथियों  को  दिवाली की हार्दिक शुभकामनाये ...
लीजिये पेस है मेरे तरफ से मिठाईया   व पठाखे आप के लिए  :):)


अजी शरमाइये नहीं एक ही खा लीजिये ... :):)

जरा संभल कर ____ :) 
 
एक बार फिर आप सभी को स-परिवार  दिवाली की हार्दिक शुभकामनाये   

 

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

मुझे वन्देमात्रम गाना है

क्यों न रास्ट्र गान के रूप में वन्देमात्रम गाया  जाये  ?
 


जन गण मन की कहानी ..............................​.

सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल
विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के
लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से
हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर
दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने
अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित
 किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत
में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज
पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा।


उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके
परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके
बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता
डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया
कंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी
अंग्रेजों के लिए। रविंद्रनाथ
 टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन अधिनायक
जय हे भारत भाग्य विधाता"। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी
राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो
हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था।


इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है "भारत के नागरिक, भारत की
जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे
अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो !
जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात,
मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा,
बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और
 गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम
जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा
गाते है। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय
हो। "


जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया। जब वो
इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया।
क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं
आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है। जब अंग्रेजी
अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज
तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की।
 वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम
के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड
गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था।


उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला
किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर
दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके
इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना
ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो
लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और
 यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो
गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है। जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र
नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया
गया।


रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला
कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा
क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब
उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक
कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत
जोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो
 की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली।
इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को
लौटा दिया। सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो
अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो
के खिलाफ होने लगे थे।


रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और
ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद
की घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन' अंग्रेजो के
द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा
नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है। लेकिन अंत में उन्होंने
लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को
 नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब
कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे। 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ
टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र
सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये।


1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई।
जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल
नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि
स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition
Government) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर
सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस
 मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल
बनाया। कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल।


गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे
मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं
स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से
इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के
लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम
दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे।
 उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय
अंग्रेजो से समझौते में रहते थे। वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ
होती थी। नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन
गण मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम"।


नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था
तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि
मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती
(मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर
विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली
जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना
 शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे
मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये
कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब
भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति
कर डाली। संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद
ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित
 वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई।


बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम था
पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के
दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से
मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का
फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन
मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम
 (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया
जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया "विजयी
विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा"। लेकिन नेहरु जी उस पर भी
तैयार नहीं हुए।


नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन
मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है। उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस
मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु
जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर
इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी
प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो
 इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया।
नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को
चोट पहुंचे, मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने
पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे,
जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया
गया गीत था और वन्देमातरम
 इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।


बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग
रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो
99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई
कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई
देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि
इसमें जो लय है उससे एक जज्बा
 पैदा होता है।


तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना है
कि आपको क्या गाना है ?




जय हिंद |